Tuesday, 10 December, 2013

करो उद्घोष - करो अधिकार

छद्म रूप में विषधर बैठा 
कमलकुंज के पार 
एक कोने में डायन बैठी 
नख शिख कर तैयार 

खून चूसने वाले पिस्सू 
नेता पदवी पा बैठे हैं 
पेट फुलाए अजगर जैसे 
जाने क्या क्या खा बैठे हैं 

जनता आती हैं का तुम
करो उद्घोष - करो अधिकार

कालसर्प के दोष से
राजनीती का करो उद्धार
छीनो भ्रष्ट हाथ से सत्ता
मातृभूमि यह करे पुकार

जनता आती हैं का तुम
करो उद्घोष - करो अधिकार
झाड़ू फेरो मंसूबो पर

करो सिंहासन पर अधिकार

Tuesday, 20 August, 2013

शंकर

जो पीड़ित दुखी हैं दुनिया में
उनका अपना बनना होगा
मदर टेरेसा की मानिंद
माँ का सा मन रखना होगा

विष का पान करोगे
तो ही शंकर बन पाओगे
धारण मुकुट हो कांटो का
तभी जीसस कहलाओगे

पीर परायी ना जानी
कैसे बन जाओगे गाँधी
दीपक सा रोशन होओगे
जब झेलोगे झंझा आंधी

छायादार वृक्ष सा विस्तार
कर देना अपना तन मन
देश प्रेम हो ह्रदय में
होठो पे हमेशा हो जन गण

Wednesday, 19 December, 2012

मैं मानवी, अब विद्रोह करुँगी

मानव, 

कुत्शितता 
निर्लज्जता 
तेरी बर्बरता 
की पराकाष्ठा 

मैं मानवी 
तेरी जन्मदात्री 
सह-धर्मिणी 
तेरी भगिनी
असह्य पीड़ा
विलाप नहीं
अब विद्रोह करुगी

मेरा उत्ताप
मेरा श्राप
भस्मीभूत न करे
कर पश्चाताप

मुझसे द्वेष नहीं
प्रेम कर,
स्नेह कर,
अन्यथा वंचित
ममत्व से
मैं करुँगी
विलाप नहीं
अब विद्रोह करुँगी /

Saturday, 8 September, 2012

सम्पूर्ण स्वराज बिना संसदीय लोकतंत्र में भागीदारी के संभव नहीं

फिर से चुनाव आएगा / फिर से वोट देने की मजबूरी, व्यथित हूँ क्या करू ? वोट न दूं तो ऐसा लगता हैं जैसे अपने अधिकार का प्रयोग नहीं किया और वोट दू तो ऐसा लगता हैं अपने अधिकार का उपयोग नहीं किया / प्रयोग और उपयोग, अजीब कशमकश हैं / वोट किसको दे , सारे दल फेल हो चुके हैं / भारत की जनता ने सबको मौका दिया लेकिन कोई भी जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा / आजादी के बाद से हम एक ही तरह की बुनियादी समस्याओ से निजात नहीं पा सके हैं / जस की तस कड़ी हैं बेरोजगारी और भुखमरी- गरीबी / गिने चुने लोग अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और कृषक मजदूर किसी तरह दो बेला चावल रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं / रोटी कपडा और मकान सबसे बुनियादी जरुरत से भी भारत की अधिकतर जनता वंचित हैं / हमारे चुने ही जन प्रतिनिधि ही हम से विश्वासघात करते हैं , चुनाव के वक़्त भीख का कटोरा लिए घुमते हैं , दारु , नोटों की गड्डिया, टेलीविजन और मंगलसूत्र साडी बांटते हैं / साम दाम दंड भेद से हमसे हमारा वोट छिनते हैं और अगले पांच वर्ष तक देश का खजाना लूटते हैं / हमारे हक के साथ अन्याय करते हैं और जनता को गुलाम समझते हैं / व्यवस्था में परिवर्तन चाहिए , हमे स्वराज चाहिए /

पर कैसे आएगा स्वराज, कैसे बदलेगी व्यवस्था ? पिछले दिनों अन्नाजी के नेत्रित्व में जनांदोलन अपने उत्कर्ष पर था / देश के हर वर्ग की जनता के मन में एक आशा जगी थी, अब कुछ होगा, अब कुछ हो सकता हैं / लेकिन सरकार ने जन भावनाओ को कोई तवजोह नहीं दी, अपने षडयन्त्रो से आन्दोलन को कमजोर करने का कार्यकर्म जारी रखा / हर तरीके के आरोप और आक्षेप लगाये गए आन्दोलन के नेत्रित्व पर / लेकिन अन्ना जी के लिए लोगो का प्यार बरक़रार रहा और अरविन्द केजरीवाल की सोच और दूरदर्शिता पर विश्वाश / क्या जनता के इस प्यार और भरोशे को भी ठोकर मिलेगी ? अगर इस बार भी यही हुआ तो जनता का मनोबल टूटेगा और जो लोग अब ये सोचने लगे हैं की अब बदलाव संभव हैं वो फिर से यही कहने लगेगे " इस देश का कुछ नहीं हो सकता " /

अन्नाजी आपसे अनुरोध हैं देश की जनता को विकल्प दीजिये , आप राजनीती में न आये न आप पार्टी का गठन करे न ही पार्टी के अध्यक्ष बने , लेकिन कान मरोड़ने के लिए आपकी जरुरत हैं देश को / अरविन्द केजरीवाल के नेत्रित्व में राजनैतिक क्रांति होने दीजिये देश में / अगर वो गलत करे तो उन्हें भी रोकिये गलत करने से / अच्छे लोगो का चुनकर आना, अच्छे लोगो की सरकार बनना , संसद के शुद्धिकरण का महान कार्य बिना किसी निर्देशन के संभव नहीं / हो सकता हैं जन आन्दोलन के दबाब में सरकार आधा अधुरा और कमजोर लोकपाल कानून बना तो दे लेकिन उसके आगे के लक्ष्य राईट टू रिजेक्ट , राईट टू रिकाल और सम्पूर्ण स्वराज बिना संसदीय लोकतंत्र में भागीदारी के संभव नहीं /

Saturday, 29 October, 2011

मैं सरकारी अफसर हूँ

मैंने कुछ पुस्तके पढ़ी हैं
इसलिए ज्ञान मेरे अन्दर ही समाया हैं
मैकाले की अंग्रेजियत 
मेरे रगों में हैं
और मैं तुमसे जुदा हूँ
सबसे जुदा हूँ 
एक अलग सा व्यक्तित्व हूँ
मैं सरकारी अफसर हूँ
तुम सब जो आते हो मेरे कार्यालय
मेरे चपरासी से हुडकी खाते हुए
मेरे सामने रखी कुर्सी पर 
बैठने की इजाजत नहीं हैं तुम्हे
बिना मुझे सलाम किये 
मैं पता नहीं कितनो की भीड़ को
रौदकर इस पद तक पंहुचा हूँ
इसलिए इस पद की गरिमा हैं
हमे भी तो झुकना पड़ता हैं
खादी पहने या बिना पहने नेताओ के सामने
उनके रिश्तेदारों
रसूखदार व्यवसायियों के सामने
कभी कभी तो गूंडे भी रसूखवाले होते हैं
तो तुम भी झुको मेरे सामने
नत मस्तक रहो
हम क्या करे, वही सही हैं
तुम्हारा कोई अधिकार  ?
जो हम दे वही तुम्हारा 
तुम्हारा काम ?
जब हम करे तभी होगा 
हमारी मर्जी नहीं
वो तो रब की मर्जी हैं
क्युकी तुम आम आदमी हो
तुम जनता हो
और हम सरकार
मैं तुमसे जुदा हूँ
सबसे जुदा हूँ
मैं अलग सा व्यक्तित्व हूँ 
मेरी रगों में हैं
मैकाले की अंग्रेजियत
मैं क्यूँ सोचु की क्या हो रहा हैं
तुम्हारे साथ
मैं क्यूँ सोचु की
क्यूँ चूल्हा नहीं जला तुम्हारे घर
मैं क्यूँ सोचु की नकली दवा
या नकली शराब से क्यूँ मरते हो तुम
मैं क्यूँ सोचु की व्रत का आटा
और मावा छेना दूध भी क्यूँ 
नकली होने लगा हैं ?
मैं क्यूँ सोचु की देश का राजश्व
कहा खर्च हो रहा हैं
मुझे तो ये सोचने से ही फुर्सत नहीं
मेरे आका तक कितना पहुचाना हैं/
मैं क्यूँ जवाबदेह बनू किसी कानून का
मैं तो खुद कानून हूँ
क्युकी मेरी रगों में
अंग्रेजियत हैं मैकाले की 
और मैं तुमसे जुदा हूँ
सबसे जुदा हूं
जनता का दुःख दर्द मैं समझता हूँ
तभी तो हर रेल दुर्घटना के बाद
या बम ब्लास्ट के बाद
मुवावजा तो देता हूँ
अब कितना दूं 
ये तो हमारी मर्जी हैं
दया पर कोई हक़ तो नहीं होता
और मैं ये क्यूँ सोचु
रेल दुर्घटना क्यूँ हुयी
बम क्यूँ फटा
आप खुद कीजिये अपनी सुरक्षा
क्यूँ आप उम्मीद रखते हैं हमसे 
क्या आप नहीं समझे अब तक
मैं तुमसे जुदा हूँ
सबसे जुदा हूँ
मैं अलग सा व्यक्तित्व हूँ 
मेरी रगों में हैं
मैकाले की अंग्रेजियत

Monday, 30 May, 2011

सरकार को चेताने के लिए हम क्या करे ?



मनमोहन सिंह और उनकी आका सोनिया गाँधी को नींद से जगाने के लिए ,
 जन भावना और जनमत के प्रति उनके कर्तव्य की याद दिलाने के लिए
लोकपाल के दायरे में चपरासी से लेकर प्रधान मंत्री और न्यायाधीश सभी को लाने के लिए आने वाले ५ दिनों में क्या करना चाहिए :-

१. हर गाँव शहर से सरपंच से लेकर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट तक सबको ज्ञापन देना चाहिए
२. हर बाज़ार चौराहे पर प्रदर्शन होने चाहिए
३. हर जिले में जुलूस निकलना चाहिए
४. 5 तारीख को सारे देश में शाम 7-8 बजे तक ब्लेक आउट होना चाहिए
५. 4 जून से होने वाले भारत स्वाभिमान के सत्याग्रह का अन्ना जी को समर्थन करना चाहिए

Sunday, 15 May, 2011

व्यवस्था में परिवर्तन चाहिए , हमे स्वराज चाहिए /



फिर से चुनाव आएगा / फिर से वोट देने की मजबूरी, व्यथित हूँ क्या करू ? वोट न दूं तो ऐसा लगता हैं जैसे अपने अधिकार का प्रयोग नहीं किया और वोट दू तो ऐसा लगता हैं अपने अधिकार का उपयोग नहीं किया / प्रयोग और उपयोग, अजीब कशमकश हैं / वोट किसको दे , सारे दल फेल हो चुके हैं / भारत की जनता ने सबको मौका दिया लेकिन कोई भी जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा / आजादी के बाद से हम एक ही तरह की बुनियादी समस्याओ से निजात नहीं पा सके हैं / जस की तस कड़ी हैं बेरोजगारी और भुखमरी- गरीबी / गिने चुने लोग अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और कृषक मजदूर किसी तरह दो बेला चावल रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं / रोटी कपडा और मकान सबसे बुनियादी जरुरत से भी भारत की अधिकतर जनता वंचित हैं / हमारे चुने ही जन प्रतिनिधि ही हम से विश्वासघात करते हैं , चुनाव के वक़्त भीख का कटोरा लिए घुमते हैं , दारु , नोटों की गड्डिया, टेलीविजन और मंगलसूत्र साडी बांटते हैं / साम दाम दंड भेद से हमसे हमारा वोट छिनते हैं और अगले पांच वर्ष तक देश का खजाना लूटते हैं / हमारे हक के साथ अन्याय करते हैं और जनता को गुलाम समझते हैं / व्यवस्था में परिवर्तन चाहिए , हमे स्वराज चाहिए /