Saturday 25 October, 2008

आन्च्लिक्तावाद , भारतीय संघीय प्रणाली को चुनौती

महाराष्ट्र में जो हुआ, जो हो रहा हैं, उसका प्रतिउत्तर जो पटना में गूँज रहा हैं वो कत्तई किसी भी राष्ट्र के लिए एक चुनौती हैं। अपने ही देश वासियो पे लाठी चलाना, बन्दूक तान ना किसी भी राष्ट्र के सैनी, सुरक्षा बल के लिए कठिन होता होगा, ये मेरा मानना हैं। मुंबई में ऐसा नही की पुलिस बल नही था, या फ़िर उनका उद्देश्य दंगा रोकना नही था, पर जब अपने ही लोगो पर, अपने भाइयो पर लाठी भांजनी हो तो हाथ कापने लगते हैं। २८.10.२००८ लेकिन महाराष्ट्र पुलिस के haath नही कांपे राहुल raj को किसी खतरनाक आतंकवादी ki तरह एनकाउंटर me ढेर करते। क्या हो रहा हैं देश में ? एक अकेला नौजवान बस में चढ़ता हैं और बस को एक तंमचे से हाइजैक करने की कोशिश करता हैं ? (प्रश्न चिन्ह) । मुंबई पुलिस जिसे आतंकवादियो और दावूद गैंग, ड्रग माफिया और स्थानीय भाइयो से लोहा लेने का अपार अनुभव हैं, क्या राहुल राज को गिरफ्तार नही किया जा सकता था ? क्या उसकी मांगो के मुताबिक पुलिस कमिश्नर से उस्सकी बात नही करायी जा सकती थी। आनन् फानन में राहुल राज का कत्ल बिहारियों और उत्तर भारतीयों की आवाज दबाने की कोशिश हैं।

सोचने की बात ये हैं की पढ़े लिखे छात्र, बुद्धिजीवी, भी बिहारी मराठी जैसे आन्च्लिक्तावादी सोच रखते हैं, और ऐसी विचारधारा बढती जा रही हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री माननीया शीला दीक्षित भी एक बार अपनी ऐसी ही सोच जाहिर
कर चुकी हैं। भारत एक संघीय प्रणाली से गठित हैं, राज्य अलग अलग हैं पर राष्ट्र एक, यहाँ सभी भारतीय नागरीक हैं। चाहे वो किसी भी राज्य से हो , सबको समान अधिकार प्राप्त हैं। मेरा मानना ये हैं की, किसी भी भारतीय को इससे कोई ऐतराज भी नही हैं जब तक कोई राजनैतिक उकसावा ना हो। लेकिन राजनीती बड़ी कुत्ती चीज हैं, इसे और कुछ नजर नही आता सिवा वोट बैंक के।