Saturday 8 September, 2012

सम्पूर्ण स्वराज बिना संसदीय लोकतंत्र में भागीदारी के संभव नहीं

फिर से चुनाव आएगा / फिर से वोट देने की मजबूरी, व्यथित हूँ क्या करू ? वोट न दूं तो ऐसा लगता हैं जैसे अपने अधिकार का प्रयोग नहीं किया और वोट दू तो ऐसा लगता हैं अपने अधिकार का उपयोग नहीं किया / प्रयोग और उपयोग, अजीब कशमकश हैं / वोट किसको दे , सारे दल फेल हो चुके हैं / भारत की जनता ने सबको मौका दिया लेकिन कोई भी जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा / आजादी के बाद से हम एक ही तरह की बुनियादी समस्याओ से निजात नहीं पा सके हैं / जस की तस कड़ी हैं बेरोजगारी और भुखमरी- गरीबी / गिने चुने लोग अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और कृषक मजदूर किसी तरह दो बेला चावल रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं / रोटी कपडा और मकान सबसे बुनियादी जरुरत से भी भारत की अधिकतर जनता वंचित हैं / हमारे चुने ही जन प्रतिनिधि ही हम से विश्वासघात करते हैं , चुनाव के वक़्त भीख का कटोरा लिए घुमते हैं , दारु , नोटों की गड्डिया, टेलीविजन और मंगलसूत्र साडी बांटते हैं / साम दाम दंड भेद से हमसे हमारा वोट छिनते हैं और अगले पांच वर्ष तक देश का खजाना लूटते हैं / हमारे हक के साथ अन्याय करते हैं और जनता को गुलाम समझते हैं / व्यवस्था में परिवर्तन चाहिए , हमे स्वराज चाहिए /

पर कैसे आएगा स्वराज, कैसे बदलेगी व्यवस्था ? पिछले दिनों अन्नाजी के नेत्रित्व में जनांदोलन अपने उत्कर्ष पर था / देश के हर वर्ग की जनता के मन में एक आशा जगी थी, अब कुछ होगा, अब कुछ हो सकता हैं / लेकिन सरकार ने जन भावनाओ को कोई तवजोह नहीं दी, अपने षडयन्त्रो से आन्दोलन को कमजोर करने का कार्यकर्म जारी रखा / हर तरीके के आरोप और आक्षेप लगाये गए आन्दोलन के नेत्रित्व पर / लेकिन अन्ना जी के लिए लोगो का प्यार बरक़रार रहा और अरविन्द केजरीवाल की सोच और दूरदर्शिता पर विश्वाश / क्या जनता के इस प्यार और भरोशे को भी ठोकर मिलेगी ? अगर इस बार भी यही हुआ तो जनता का मनोबल टूटेगा और जो लोग अब ये सोचने लगे हैं की अब बदलाव संभव हैं वो फिर से यही कहने लगेगे " इस देश का कुछ नहीं हो सकता " /

अन्नाजी आपसे अनुरोध हैं देश की जनता को विकल्प दीजिये , आप राजनीती में न आये न आप पार्टी का गठन करे न ही पार्टी के अध्यक्ष बने , लेकिन कान मरोड़ने के लिए आपकी जरुरत हैं देश को / अरविन्द केजरीवाल के नेत्रित्व में राजनैतिक क्रांति होने दीजिये देश में / अगर वो गलत करे तो उन्हें भी रोकिये गलत करने से / अच्छे लोगो का चुनकर आना, अच्छे लोगो की सरकार बनना , संसद के शुद्धिकरण का महान कार्य बिना किसी निर्देशन के संभव नहीं / हो सकता हैं जन आन्दोलन के दबाब में सरकार आधा अधुरा और कमजोर लोकपाल कानून बना तो दे लेकिन उसके आगे के लक्ष्य राईट टू रिजेक्ट , राईट टू रिकाल और सम्पूर्ण स्वराज बिना संसदीय लोकतंत्र में भागीदारी के संभव नहीं /