Thursday, 11 June 2009

माँ काश तुमने मुझे सिखाया होता

माँ काश तुमने मुझे सिखाया होता
झूठ बोलने का हुनर
थोडी सी मक्कारी
जीने का तरीका
जो चलता हैं आजकल
चापलूसी करने की कला
मन के हाव भाव
चेहरे तक आने न देने का सऊर
सलीका अनजान बनने का
करके भूल
कम से कम इतना तो सिखाया होता
कैसे कड़वे सच को
मीठा किया जाता हैं .
आज किसीने प्रश्न किया हैं
तेरे प्यारे बेटे से
क्या सिखा हैं तुमने
बताओ ना माँ
क्या जवाब दूं ?

3 comments:

Vinay said...

संवेदन शील रचना है

बसंत आर्य said...

एक सच्चे आदमी की पीडा का सही बयान है

nagarjuna said...

बसंत आर्य जी ने बिलकुल सही फ़रमाया है... सुन्दर रचना के लिए साधुवाद!