आओ कुछ तो नया करे
चलो हम जिंदगी को उलझाते हैं,
लोग कहते हैं की सबसे अहम् रुपैया हैं
हम उसे जरुरत मंदों को बाँट आते
सपने हमने देखे हैं
कुछ धुंधले ख्वाब उसने भी देखे होंगे
कुछ करे की सच हो हर सपना
उन का
अपने ख्वाब ताक पर रख आते हैं
पंडितो को जीमा जीमा कर थक गए
कोई तकदीर ना बदली
इस बार ऑफिस का मुहूर्त
किसी मासूम बच्चे से निकलवाते हैं
रेलवे फाटक के पास जो मलिन बस्ती हैं
वहां से मेहमान बुलाते हैं
चलो थोडी चोरी करते हैं मुस्कराहट
अपने लिए
चलो गमो से दूर चले जाते हैं
तुम्हारे घर के पास
एक अनाथालय हैं
आज ऐतवार हैं, हम पैदल चले
बच्चो को गाड़ी दे आते हैं
9 comments:
शुभ विचार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
baat hai !
bhai baat hai !
waah kya baat hai !
सही है। एक्स्पेरिमेन्ट बुद्धिजीवियों का एक शगल है। और यकीन है कि इसकी उडा़न शब्दों से आगे नहीं है। फिर भी कहना भी कम नहीं है। जो प्रयोग कहने में हिचकिचाता हो और एक्स्पेरिमेन्ट उसे अधिक भाता हो उसका धरती से है कितना नाता इसे जानता होगा विधाता। फिर भी भैय्या कहके तो भर ही दिया पेट। बुरा तो लगा होगा लेकिन मुझे अज्ञानी जानकर क्षमा कर दीजियेगा।
अच्छी बात..
Sneh aur shubh kaamnayon sahit swahat hai..
bahut achha likha hai aapane
aashirvad. narayan narayan
Achchi rachna hai.Badhai.
पंडितो को जीमा जीमा कर थक गए
कोई तकदीर ना बदली
गरीब बच्चों को मिठाई खिलाओ तो शोक-चिन्ता मिट जायेंगे।
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