Monday, 29 September 2008

भारत उदय - 3

एक सोच थी,
एक सपना था,
हर हाथ में मोबाइल हो (धीरुभाई का सपना)
की हर कान में गूंजे
एक मधुर घनघनाहट
(क्षमा करे फ़ोन की रिंग को घनघनाहट कहा जाता था)

काश उनकी आँखों में
कुछ ऐसे सपने आए होते,
हर पेट में रोटी
हर हाथ में कलम
और हर होंठ पे मुस्कराहट

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