Monday, 29 September 2008

अतीत यौवन और आज

जन्मदिवस की अथाह खुशी
और नववर्ष में समाने का वो क्षणिक उत्साह
घने कोहरे के आगोश में ठिठुरती कलम
सोचने लगी अतीत यौवन और आज

धुल धूसरित बालपन
माँ का स्नेह, पिता की फटकार,
मार दुलार
वो खेल खिलौने
वो छोटा सा बांस बल्लियो का घर
और उसके कोने कोने
बेसुध नींद , वो प्यारे बिछौने ।

ईंट पत्थरों की कठोर दीवारों में
कसमसाई,
डनलप के गद्दे, मंहगे पलंग,
छटपटाती
करवट बदलती नींद
महकते कमरे में याद आती
माटी की सौंधी महक।

बचपन कैशोर्य और यौवन के
क्षीण सीमारेखाओ को पहचानता
आधी नींद के बाद जगा
मैं और मेरी कलम
सोचने लगी, अतीत यौवन और आज।

किशोर मैं , अनियंत्रित झोंका
पालविहिन नौका,
उतकृष्ट मानस का अभावमय अंत
उद्दंड मैं सामान्य विद्यार्थी॥

यौवन से सामना
अनुराग, प्रेम, और
असीम कल्पना
चाह क्षितिज स्पर्श की
मंजिले अनेक थी
राह एक भी नही
पथ एक तलाशता
चाँद को था चाहता
यूँही रात ढल गई
जिंदगी बदल गई।

ओश बिखरी पत्तिया
चमक गई किरण उषा
पक्षियो का कुजन गूंजा
एक नई भोर थी।

एक नई भोर थी,
सारे राह मोडती,
पत्थरों की राह थी
रोटियों की दौड़ थी।

गाँव शहर छोड़कर
आ गया महानगर
वायु दम घोटती
हर पल भाग दौड़ थी,
फुरशत के पल कहाँ?
आधी रात में जगा
मैं और मेरी कलम

बचपन कैशोर्य और यौवन
क्षीण सीमारेखाओ को पहचानता
आधी नींद के बाद जगा
मैं और मेरी कलम
सोचने लगी,
अतीत यौवन और आज।

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