ये नया दौर हैं,
वक्त बदलना हैं,
एक नही दो कदम चलना है
रूप कँवर, आरुशी,
मधुस्मिता, अनारा गुप्ता
किस्मत की छली हैं ?
क्यूँ रोना हैं वक्त बदलना हैं।
एक नही दो कदम चलना हैं॥
कोई साथ नही, कोई सहारा कहाँ?
सूरज की रौशनी तो हैं मयस्सर
तुम्हे चलना हैं।
छोटी छोटी बातो से
लबलबाता सैलाब आँखों का
पलकों के पीछे एक बाँध करना हैं,
वक्त बदलना हैं,
एक नही दो कदम चलना हैं॥
शहरो में ललचाई लाल आँखों की भीड़ में,
इन कोपलों को खिलना हैं,
हॉस्टल की अधजली अधपकी रोटियां
याद आती हैं ना माँ की गूंथी चोटिया ?
रूकती चलती ट्रेन में
सफर तय करना हैं
वक्त बदलना हैं
एक नही दो कदम चलना हैं॥
नया दौर हैं देखो रुको नही
एक कदम ठहरना
दो कदम पिछड़ना हैं
एक नही दो कदम चलना हैं॥
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