Wednesday 1 October, 2008

तुष्टिकरण का परिणाम

भारत में जो हो रहा हैं, इंडियन मुजाहिद्दीन, हुजी, इत्यादि जो पनप रहे हैं इनके पीछे भारतीय राजनीतिज्ञों का बहुत बड़ा हाथ हैं। छुट भैये नेताओ से लेकर मोमिन भाइयो तक , सफ़दर नागौरी से लेकर आतिफ या किसी भी बड़े से बड़े आतंकवादी तक, कही न कही किसी न किसी राजनैतिक रसूख वाले का प्रश्रय हैं। एक बार फ़िर से युवा शक्ति को आगे आना होगा अगर देश को फ़िर से आजाद करना हैं इन देश बेचनेवालों से। मुझे तो ये समझ ही नही आया की जब असम का छात्र संघ मांग कर रहा था की देश से विदेशियो (विशेषकर बांग्लादेशियो ) को निकालो, वो कहाँ ग़लत थे ?
जब धारा ३७६ हटाने की बात आती हैं तो सारे राजनैतिक दल चुप क्यूँ हो जाते हैं? इनका खून क्यूँ नही खौलता जब संसद पर आक्रमण होता हैं, जब बांग्लादेश सीमा से १२ सैनिको की क्षत विक्षत लाशे आती हैं और जिनका अमानवीय तरीके से गुप्तांग कटे हुए होते हैं, इन राजनेताओ के पास तो स्वाभिमान हैं नही, इन्होने देश का स्वाभिमान भी गिरवी रख दिया हैं, वोट बैंक के सामने । अब एक ही रास्ता बचा हैं ये नपुंसक राजनेता नई पीढी के लिए रास्ता प्रशस्त करे, या फ़िर नई पीढी नेस्तनाबूद करे इन भ्रष्टाचारी और रीढ़ विहीन राजनेताओ को।

No comments: